वाहिगुरू जी का खालसा
वाहिगुरू जी की फतेह

    
बसंत की वार महलु ५

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥        
हरि का नामु धिआइ कै होहु हरिआ भाई ॥        
करमि लिखंतै पाईऐ इह रुति सुहाई ॥        
वणु त्रिणु त्रिभवणु मउलिआ अम्रित फलु पाई ॥        
मिलि साधू सुखु ऊपजै लथी सभ छाई ॥        
नानकु सिमरै एकु नामु फिरि बहुड़ि न धाई ॥१॥        
पंजे बधे महाबली करि सचा ढोआ ॥        
आपणे चरण जपाइअनु विचि दयु खड़ोआ ॥        
रोग सोग सभि मिटि गए नित नवा निरोआ ॥        
दिनु रैणि नामु धिआइदा फिरि पाइ न मोआ ॥        
जिस ते उपजिआ नानका सोई फिरि होआ ॥२॥        
किथहु उपजै कह रहै कह माहि समावै ॥        
जीअ जंत सभि खसम के कउणु कीमति पावै ॥        
कहनि धिआइनि सुणनि नित से भगत सुहावै ॥        
अगमु अगोचरु साहिबो दूसरु लवै न लावै ॥        
सचु पूरै गुरि उपदेसिआ नानकु सुणावै ॥३॥१॥             
    

वाहिगुरू जी का खालसा
वाहिगुरू जी की फतेह